Monday, 8 August 2016

Formative and Summative Evaluation



 

 Formative and Summative Evaluation 

संरचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन

मूल्यांकन के दो प्रकार होते हैं जिन्हें एक दूसरे से अलग माना जाता है क्योंकि उनका उपयोग अलग-अलग तरीकों से और भिन्न प्रयोजनों के लिए किया जाता है। आप अपने स्वयं के शैक्षणिक अनुभव से योगात्मक मूल्यांकन से बहुत परिचित होंगे, लेकिन हो सकता है संरचनात्मक मूल्यांकन में मूल्य और अवसर का पूरी तरह से अन्वेषण नहीं किया होगा या हो सकता है आप उसे पहले से ही कर रहे हों लेकिन अपने कौशल के बारे में पूरी तरह से नहीं जानते होंगे।
  • संरचनात्मक मूल्यांकन को कई लोगों द्वारा सीखने के लिए आकलन भी कहा जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन का मुख्य प्रयोजन छात्रों को वह रचनात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त करने में सक्षम बनाना है जो उन्हें बेहतर सीखने और प्रभावी प्रगति करने में उनकी मदद करेगी। ऐसी प्रतिक्रिया आम तौर पर (लेकिन हमेशा नहीं) शिक्षकों द्वारा दी जाती है।
  • योगात्मक मूल्यांकन को सीखने के  मूल्यांकनके नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार के मूल्यांकन का प्रयोजन शिक्षक को छात्रों की उपलब्धि और कार्य प्रदर्शन की पहचान करने में सक्षम करना है, जिसमें योगात्मक मूल्यांकन का उपयोग आम तौर पर एक छात्र की अन्य छात्रों के समक्ष तुलना करने के लिए किया जाता है, जबकि संरचनात्मक मूल्यांकन का उपयोग सीखने की प्रगति के लिए किया जाता है।
संरचनात्मक मूल्यांकन छात्रों के आगे चलते जाने और सीखने में प्रगति करने के लिए मार्ग बनाता है। यह निम्नलिखित की पहचान कर सकता है:
  • छात्र क्या कर सकता है और क्या नहीं?
  • छात्रों को क्या कठिन लगता है?
  • किसी भी अंतर और छात्र को हो सकने वाली गलतफहमियाँ।
इसमें शामिल होता है:
  • सीखने के स्पष्ट लक्ष्यों की चर्चा करते हुए, छात्र के साथ संवाद
  • छात्र का अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सक्रिय होना
  • स्वतः- और समकक्षीय समीक्षा सहित प्रगति की निगरानी।
सामयिक और उपयोगी प्रतिक्रिया प्रक्रिया का हिस्सा है क्योंकि वह सुधरने में छात्रों की मदद करता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि छात्र और शिक्षक दोनों अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने लिए दृढ़ रहें जब तक कि छात्र अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लें, जिसके लिए निश्चित तौर पर शिक्षक को छात्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए अपने अध्यापन में समायोजन करने पड़ सकते हैं।
इसलिए, संरचनात्मक मूल्यांकन का योगात्मक मूल्यांकन के मुकाबले बहुत अलग प्रयोजन और दृष्टिकोण होता है। योगात्मक मूल्यांकन अधिक औपचारिक होता है। संरचनात्मक मूल्यांकन कक्षा के संदर्भ में संपन्न होता है और शिक्षक और छात्र के बीच संबंध की बुनियाद पर विकसित होता है। संरचनात्मक मूल्यांकन (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन, 2009) की मुख्य विशेषताएं ये हैं:
  • वह नैदानिक और सुधारात्मक है
  • वह प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए प्रावधान करता है
  • वह छात्रों के स्वयं सीखने में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए मंच प्रदान करता है
  • वह शिक्षकों को मूल्यांकन के नतीजों को ध्यान में रखते हुए अध्यापन को समायोजित करने में सक्षम करता है
  • वह उस अगाध प्रभाव की पहचान करता है जो मूल्यांकन छात्रों की प्रेरणा और आत्म-सम्मान, जिनके सीखने की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण प्रभाव होते हैं, पर डालता है।
  • वह छात्रों की स्वयं का मूल्यांकन करने और सुधार करने के तरीके को समझने में सक्षम होने की जरूरत की पहचान करता है
  • वह जो कुछ पढ़ाया जाना है उसकी परिकल्पना के लिए छात्रों के पूर्व ज्ञान और अनुभव की नींव पर विकसित होता है
  • कैसे और क्या पढ़ाया जाना है यह तय करने के लिए सीखने की विभिन्न शैलियों को समाविष्ट करता है
  • छात्रों को वे मापदंड समझने को प्रोत्साहित करता है जिनका उपयोग उनके काम को परखने के लिए किया जाएगा
  • छात्रों को प्रतिक्रिया के बाद उनके काम को सुधारने का अवसर प्रदान करता है
  • छात्रों की उनके समकक्षों की सहायता करने, और उनके द्वारा सहायता किए जाने में मदद करता है।
संरचनात्मक मूल्यांकन शिक्षक को वहाँ से आगे बढ़ने का अवसर देता है जहाँ छात्र होता है और छात्र को यह समझने का मौका देता है कि उन्हें सफल होने के लिए क्या करना है। इसलिए संरचनात्मक मूल्यांकन विद्यार्थी को शामिल करता है और छात्र को उसके सीखने का स्वामित्व प्रदान करता है।
सतत और व्यापक मूल्यांकन (सीसीई) का वर्णन (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन, 2009) निम्न प्रकार से किया जाता है:
सीसीई का मुख्य जोर छात्रों के बौद्धिक, भावात्मक, शारीरिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास को सुनिश्चित करते हूए उनकी सतत प्रगति पर होता है और इसलिए वह विद्यार्थी की शैक्षिक योग्यताओं तक ही सीमित नहीं होगा। वह मूल्यांकन का उपयोग विद्यार्थियों […] को प्रतिक्रिया और अनुवर्ती काम की व्यवस्था करने के लिए जानकारी प्रदान करने को प्रेरित करने के साधन के रूप में करता है ताकि कक्षा में सीखने की प्रक्रिया को सुधारा जा सके और विद्यार्थी की प्रोफाइल की एक व्यापक तस्वीर प्रस्तुत की जा सके।
गतिविधि 1 आपसे विद्यालय के परिवेश में संरचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन के बीच अंतरों के बारे में सोचने को कहती है। यह वह गतिविधि है जिसका उपयोग आप अपने शिक्षकों के साथ संरचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन के बारे में चर्चा शुरू करने के लिए कर सकते हैं।

गतिविधि : संरचनात्मक और योगात्मक मूल्यांकन की पहचान करना

नीचे उन मूल्यांकन के अवसरों की सूची दी गई है जिनका उपयोग आपके विद्यालय में कक्षाओं में किया जा सकता है। अपनी सीखने की डायरी का उपयोग करके दो कॉलम बनाएं, एक संरचनात्मक मूल्यांकन के लिए और एक योगात्मक मूल्यांकन के लिए। अब निम्नलिखित सूची में से आकलनों को दोनों में से एक कॉलम में रखें। आप देखेंगे कि कुछ मूल्यांकन, सन्दर्भ पर निर्भर करते हुए किसी भी कॉलम में जा सकते हैं उदाहरण के लिए कोई गीत गाना योगात्मक हो सकता है यदि वह संगीत की परीक्षा का भाग है या संरचनात्मक यदि वह विद्यालय में अभिनय की तैयारी के लिए है।
यह एक ऐसी गतिविधि है जिसे आप अकेले कर सकते हैं।या यदि आप इसे विस्तृत करना चाहते हैं तो एक सामूहिक गतिविधि के हिस्से के रूप में अन्य लोगों, को शामिल कर सकते हैं
  1. पेन और पेपर परीक्षा
  2. याददाश्त से दोहराना
  3. विज्ञान के किसी प्रयोग की परिकल्पना और निष्पादन करना
  4. खुली पुस्तक वाली परीक्षा
  5. शिक्षक द्वारा छात्र का प्रेक्षण
  6. व्यंजन विधि के अनुसार भोजन पकाना
  7. निबंध
  8. प्रश्नों के मौखिक उत्तर
  9. प्रदर्शन
  10. छात्र द्वारा तैयार किए गए गीत को गाना
  11. एथलेटिक्स की दौड़ में व्यक्तिगत कीर्तिमान स्थापित करना
  12. किसी नाटक की रचना और अभिनय करना

Sunday, 7 August 2016

Assessment,Evaluation,Measurement,Test and Examination

Difference among Assessment,Evaluation,Measurement,Test and
Examination

मूल्यांकन / आकलन / मापन / परीक्षण/ परीक्षा में अन्तर

           
अन्तर के बिन्दु
आकलन (Assessment)
मूल्यांकन (Evaluation)
मापन (Measurement)
परीक्षण 
 (Test)
परीक्षा (Examination)
अर्थ
आकलन एक संवादात्मक तथा रचनात्मक प्रक्रिया है, जिसके द्वारा शिक्षक को यह ज्ञात होता है कि विधार्थी का उचित अधिगम हो रहा है अथवा नहीं।
मूल्यांकन एक योगात्मक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी पूर्व निर्मित शैक्षिक कार्यक्रम अथवा पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की शैक्षिक उपलबिध ज्ञात की जाती है।
मापन आकलन मूल्यांकन की एक तकनीक है जिसके द्वारा किसी व्यक्ति या पदार्थ में निहित विशेषताओं का आंकिक वर्णन किया जाता है।
परीक्षण आकलन/मूल्यांकन का एक उपकरण है जिसके द्वारा मुख्य रूप से पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है।
परीक्षा आकलन/मूल्यांकन की वह प्रक्रिया/पद्धति है जिसके द्वारा निश्चित पाठयक्रम के पश्चात् प्राप्त अधिगम अनुभवों की व्यापक स्तर पर जांच की जाती है।
उददेश्य
इसका उददेश्य निदानात्मक होता  है। शैक्षिक संदर्भ में आकलन का उददेश्य शिक्षण- अधिगम कार्यक्रम में सुधार करना, छात्रों व अध्यापक को पृष्ठपोषण प्रदान करना तथा छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को ज्ञात करना होता है।
इसका उददेश्य मूल्य निर्णयन करना होता है। शैक्षिक संदर्भ में मूल्यांकन का उददेश्य निर्धारित पाठयक्रम की समाप्ति पर छात्रों की उपलब्धि को ग्रेड अथवा अंक के माध्यम से प्रदर्शित करना है।
मापन आकलन तथा मूल्यांकन की एक तकनीक है।
परीक्षण मूल्यांकन का एक उपकरण है। इसके द्वारा मुख्यतया पाठयक्रम के ज्ञानात्मक अनुभव कौशल की जांच की जाती है।
छात्र के ज्ञान, क्षमता, कौशल, रूचि आदि की जांच की जाती है।
परीक्षा मूल्यांकन की एक पद्धति है। इसमें मुख्यतया पाठयक्रम से प्राप्त अधिगम अनुभवों की जांच की जाती है।
छात्र को अग्रिम स्तर पर प्रोन्नत करना इसका मुख्य उद्देश्य है।
अवधि
यह सम्पूर्ण अकादमिक अवधि के दौरान निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है।
यह पाठयक्रम की समाप्ति पर होने वाली प्रक्रिया है।
यह कभी भी या कभी-कभी चलने वाली प्रणाली है।
यह एक निश्चित समय के अन्तराल पर अपनाया जाने वाला उपकरण है जैसे कि इकाईशः, मासशः आदि।
यह भी एक निश्चित समय के अन्तराल पर अपनाई जाने वाली पद्धति है
जैसे अर्धवार्षिक एवं वार्षिक आदि।

शिक्षण-शास्त्रीय
शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के साथ-साथ चलता है।
शिक्षण शास्त्र का हिस्सा है, जो पढ़ने-पढाने के अंत में  उपलब्धियों के वर्गीकरण के लिए किया जाता रहा है।
मापन मुख्य तौर पर व्यकितत्व के विभिन्न पहलुओं जैसे- मानसिक क्षमता, रूझान इत्यादि के लिए किया जाता रहा है।
पारंपरिक रूप से यह शिक्षण शास्त्र में स्मृति आधारित ज्ञान के लिए होता है तथा शिक्षणेत्तर गतिवधियों के लिए भी होता है।
पारंपरिक रूप से यह शिक्षण शास्त्र में स्मृति,बोध और चिन्तन आधारित ज्ञान के लिए होती है।